लुटियन्स दिल्ली का पहला पड़ाव -- राष्ट्रपति भवन के आगे , विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक करीब दो किलोमीटर लंबा राजपथ , जिस पर हर साल आप देखते है २६ जनवरी की परेड।
वर्ष के प्रत्येक दिन ये क्षेत्र पर्यटकों से भरा रहता है। आइये सैर करते हैं, इंडिया गेट के लौंस की।
प्रष्ठ भूमि में दिखाई दे रहा है , राष्ट्रपति भवन।
इंडिया गेट के पास ट्रैफिक बंद कर दिया गया है, जिससे की पर्यटकों को कोई असुविधा न हो।
इंडिया गेट पास से।
ये है , अमर जवान ज्योति। यहीं पर १४ अगस्त १९४७ की रात को ठीक १२ बजे प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने भारत का झंडा लगाया था और ज्योति प्रज्वलित की थी।
अब इंडिया गेट आए हैं और बोटिंग न करें, ऐसा कैसे हो सकता है। इन रंग बिरंगी बोट्स को देखकर आप बिना बोटिंग किए जा ही नही पाएंगे।
इंडिया गेट के चारों ओ़र हरे भरे लौंस --- यहीं पर पिकनिक मनाते मनाते हम और हमारे बच्चे बड़े हुए हैं।
तो भई , कैसा रहा ये सफर, बताइयेगा ज़रूर।
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आपकी नज़रों से दिल्ली देखने का मजा ही कुछ और है...बहुत नयनाभिराम चित्र...
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह बहुत ही सुंदर चित्रों के साथ आपने बड़े ही शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है! दिल्ली कि बात ही कुछ और है! सही में इंडिया गेट में घूमना और बोटिंग करने में कुछ अलग ही मज़ा है!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर चित्रों के साथ आपने बड़े ही शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है!
हटाएंवाह बहुत ही सुंदर चित्रों के साथ आपने बड़े ही शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है!
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद्! क्यूंकि मैं बचपन में, पिताजी के सरकारी कर्मचारी होने के कारण, इस इलाके (DIZ) में कई वर्ष रहा तो कहने की आवश्यकता नहीं है कि हम बच्चों के लिए यह सुंदर स्थान हमारा क्रीडास्थल था...
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें ताजा हो गयीं...तब नहर के किनारे जामुन के पेड़ होते थे और मुफ्त में फल भी (चोरी-चोरी) खाने को मिलते थे, और अब डॉक्टर इसे खाने कि हिदायत देते हैं तो इसके ऊंचे दाम के कारण मुट्ठी खोलनी मुश्किल हो जाती है (क्यूंकि 'चोरी का फल मीठा होता है' :) और तब इतनी रंगीन नावें भी नहीं थीं...नैनीताल में जिसने नाव चला ली हो तो उसके लिए उस समय उपलब्ध नावों के चप्पू ही बहुत भारी लगते थे :)
इसी स्थान पर हम बच्चों को एक ऐसा अवसर मिला जो आज संभव नहीं है: जब तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने हमें अपनी खुली गाड़ी में बैठे पहले नमस्कार किया! हम कुछ बच्चे तो राष्ट्रपति भवन से उनकी गाड़ी आती देख, बिना सिक्यूरिटी गार्ड आदि के, सड़क के किनारे खड़े हो गए थे और उन्हें नमस्कार करते देख उन्हें बाद में नमस्कार किये :)
बाद में २६ जनवरी की परेड कई बार देखने को मिली - हर वर्ष बढती भीड़ और बढती सिक्यूरिटी के इंतजाम के कारण उत्पन्न रूकावट और इस कारण बाद में असुविधा के साथ...