गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

इक महल हो सपनों का ---


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले।

जब तक सूरज चाँद रहेगा, तब तक मनुष्य के मन में अरमान रहेंगे। लेकिन सबके अरमान कहाँ पूरे हो पाते  हैं . फिर भी कुछ हैं जो जिसे भी छूएं , वही सोना बन जाता है। आइये देखते हैं ऐसे ही लोगों के ठाठ बाठ।   




यह कोई तरण तसतरी नहीं, बल्कि एक लग्ज़री नाव है जिसे अमीरों की भाषा में यौट कहते हैं।






बाहर से बिल्कुल टाइटेनिक जैसी लेकिन कोई खिड़की दरवाज़े नहीं। 






अब ऊपर से देखिये।  शायद समझ में न आये।






लग रहा है जैसे कोई तीन मंजिला तैरता हुआ बंगला हो।





जी हाँ, यह तैरता हुआ बंगला ही तो है जिसके आँगन में काउच बिछे हैं धूप सेकने के लिए। यदि धूप तेज हो या बारिस आ जाये तो बरामदे में भी लेटा जा सकता है।  


अब चलते हैं इसके अन्दर।


ये रहा डाइनिंग हॉल जहाँ काफी लोग एक साथ बैठकर खाना खा सकते हैं,समुद्र में तैरते हुए।





बेडरूम और संलग्न बाथरूम देखकर तो ज़रूर कुछ कुछ हो रहा होगा।  






एक ड्राइंग रूम नीचे , एक ऊपर।  





बीच में सीढियां। डुप्ले या ट्रिप्ले ! 





अंत में बाहर निकलकर आँगन में लेटकर, बैठकर, खड़े होकर या टहलकर आप समुद्री यात्रा का आनंद ले सकते हैं।
लेकिन तब जब कोई आपको यहाँ आने का निमंत्रण दे।

अब ज़रा सोचिये, देश में ऐसा कौन है जिसने यह यौट खरीदा है ! सिफारिश तो उसके बाद ही लग पायेगी।   



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