क्षमा चाहता हूँ, मेरी बड़ी लड़की को भी शिकायत रहती है कि मैं 'सीधा' जवाब क्यूँ नहीं देता हूँ (उसकी १० वर्षीय लड़की की ही भांति!)...वो कोरिया होते हुए कनाडा (जहाँ की सुंदर फोटो आपने भी अन्यत्र दी हैं) और अब अमेरिका में रहते हैं...
मैं ब्राह्मण परिवार में जरूर पैदा हुआ, किन्तु में 'लकीर का फ़कीर' नहीं हूँ, ऐसा में कह सकता हूँ...इस कारण मैंने गहराई में जाने की कोशिश की है (या लेजाया गया हूँ!), और अपनी प्राचीन कहानियों को वर्तमान उपलब्ध सूचना से मिलान करने की कोशिश करता हूँ...इस प्रकार मैं सोचता हूँ कि मैं समझ सका हूँ कि क्यूँ सौर मंडल के नौ ग्रहों, सूर्य से शनि तक, के सार से मनुष्य के शरीर की संरचना माना प्राचीन योगियों ने...और इस पृथ्वी ग्रह पर हमारे अस्थायी जीवन को हमारे ( ) होने के कारण, यानि दूसरे ग्रह आदि से आने के कारण...किन्तु यह कठिन है कहना कि भगवान् अपने सर्व श्रेष्ट भूतों में क्या ढूंढ रहा है, जिसे प्राचीन ज्ञानी भी नहीं बता पाए...शायद वो उसके अपने आरंभ/ आरंभिक स्वरुप, यानि अपनी माँ को ढूंढ रहा हो. प्राचीन योगी थक कर उसे स्वयम्भू बता गए...
मेडिकल डॉक्टर, न्युक्लीअर मेडीसिन फिजिसियन--
ओ आर एस पर शोध में गोल्ड मैडल--
एपीडेमिक ड्रोप्सी पर डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया --
सरकार से स्टेट अवार्ड प्राप्त--
दिल्ली आज तक पर --दिल्ली हंसोड़ दंगल चैम्पियन --
नव कवियों की कुश्ती में प्रथम पुरूस्कार ---
अब ब्लॉग के जरिये जन चेतना जाग्रत करने की चेष्टा --
अपना तो उसूल है, हंसते रहो, हंसाते रहो. ---
जो लोग हंसते हैं, वो अपना तनाव हटाते हैं. ---
जो लोग हंसाते हैं, वो दूसरों के तनाव भगाते हैं. ---
बस इसी चेष्टा में लीनं.
Excellent shot...wonderful...Wow...Hats off to your imagination...Great
जवाब देंहटाएंNeeraj
बहुत सुंदर तस्वीर.. कल्पना के क्या कहने..
जवाब देंहटाएंहैपी ब्लॉगिंग
बहुत ही ख़ूबसूरत तस्वीर ली है आपने! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंbahबुत सुन्दर तस्वीर है बधाई
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ, मेरी बड़ी लड़की को भी शिकायत रहती है कि मैं 'सीधा' जवाब क्यूँ नहीं देता हूँ (उसकी १० वर्षीय लड़की की ही भांति!)...वो कोरिया होते हुए कनाडा (जहाँ की सुंदर फोटो आपने भी अन्यत्र दी हैं) और अब अमेरिका में रहते हैं...
जवाब देंहटाएंमैं ब्राह्मण परिवार में जरूर पैदा हुआ, किन्तु में 'लकीर का फ़कीर' नहीं हूँ, ऐसा में कह सकता हूँ...इस कारण मैंने गहराई में जाने की कोशिश की है (या लेजाया गया हूँ!), और अपनी प्राचीन कहानियों को वर्तमान उपलब्ध सूचना से मिलान करने की कोशिश करता हूँ...इस प्रकार मैं सोचता हूँ कि मैं समझ सका हूँ कि क्यूँ सौर मंडल के नौ ग्रहों, सूर्य से शनि तक, के सार से मनुष्य के शरीर की संरचना माना प्राचीन योगियों ने...और इस पृथ्वी ग्रह पर हमारे अस्थायी जीवन को हमारे ( ) होने के कारण, यानि दूसरे ग्रह आदि से आने के कारण...किन्तु यह कठिन है कहना कि भगवान् अपने सर्व श्रेष्ट भूतों में क्या ढूंढ रहा है, जिसे प्राचीन ज्ञानी भी नहीं बता पाए...शायद वो उसके अपने आरंभ/ आरंभिक स्वरुप, यानि अपनी माँ को ढूंढ रहा हो. प्राचीन योगी थक कर उसे स्वयम्भू बता गए...
सुंदर तस्वीरों के लिए धन्यवाद!