बुधवार, 13 जुलाई 2011

ऊटी से मैसूर , राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ६७ की प्राकृतिक छटा --ऊटी III.

ऊटी से मैसूर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ६७ पर एक से एक खूबसूरत स्थान हैं , जहाँ अक्सर हिंदी फिल्मों की शूटिंग होती रही है
इस रूट पर आरम्भ में ही विजय माल्या का गर्मियों का विशाल विश्राम घर है
शहर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर यह गौल्फ़ कोर्स है पहाड़ों में बने इस गौल्फ़ कोर्स की छटा ही निराली है


घने पेड़ों के बीच गौल्फ़ खेलना कितना मनभावन रहता होगा

यहाँ पर साजन फिल्म के एक गाने की शूटिंग हुई थी

कुछ और आगे जाने पर एक पाइन फोरेस्ट आता है यहाँ फिल्म क़र्ज़ की शूटिंग हुई थी तब से यह स्थान बहुत लोकप्रिय हो गया


पाइन के पेड़ों के बीच से उतरकर इस प्राकृतिक झील तक पहुँचते हैं ज़ाहिर है , बरसात के दिनों में इसका जल स्तर बहुत बढ़ जाता होगा






इस पुल को देखकर आपको कुछ याद रहा है ?

यह वही पुल है , जहाँ फिल्म रोज़ा के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग हुई थी , जब फिल्म का हीरो भागकर आता है और आतंकवादी उसे रिहा कर देता है इसी पुल पर हीरो हिरोइन का पुनर्मिलन का सीन फिल्माया गया था

फिल्म में कितना अलग लगता है ना

रास्ते में एक और पाइन फोरेस्ट यहाँ किस गाने की शूटिंग हुई होगी ?


थोडा आगे जाने पर आता है --नाइंथ माइल
यह एक ऐसा टीला है जहाँ से चारों ओर की वादियाँ नज़र आती हैं काफी दूर तक फैला और ऊंचा यह टीला वास्तव में काफी विशाल लगता है यहाँ भी अनेक फिल्मों की शूटिंग हुई है , जैसे मैंने प्यार किया




यहाँ हवा का दबाव इतना अधिक होता है कि हल्का फुल्का व्यक्ति तो उड़ ही जाए



चोटी से ज़ूम कर लिया गया एक चित्र पास की घाटी का

अब चलते हैं पाय्करा लेक की ओर
रास्ते में पहले एक और झील आती है जिसके पास एक झरना बहता है

लेकिन इस समय बस झील ही दिखाई दी झरना सूखा हुआ था

पाय्करा
लेक :


यह झील बहुत बड़े क्षेत्र में फैली है इसका दूसरा सिरा जंगल के बीच है इस सिरे पर डेम बना है
यहाँ आप मोटर बोट और स्पीड बोट की सवारी का आनंद ले सकते हैं


पाय्करा लेक के बाद इस टूर का अगला और अंतिम पड़ाव है --मेदुमलाई जंगल सफारी
इसके लिए हाइवे ६७ पर चलते हुए और ऊँचाई से नीचे उतरते हुए मेदुमलाई जंगल पहुँचते हैं
रास्ते में थोड़ी थोड़ी दूर पर पेड़ों के बदलती किस्मे देखकर बड़ा मज़ा आया
कहीं बांस के पेड़ों का झुरमुट , कहीं यूकेलिप्टस के पेड़ों की कतार


ये सफ़ेद रंग के तने वाले पेड़ पता नहीं किस किस्म के थे लेकिन हमारा ड्राइवर इन्हें फायर वुड कह रहा था

एक जगह सिल्वर ओक के पेड़ों का वन था इन पेड़ों की पत्तियां एक ओर से लाईट रिफ्लेक्ट करती हैं इसलिए सफ़ेद सी नज़र आती हैं जबकि होती नहीं


रास्ते में एक दृश्य

मेदुमलाई जंगल :


यह वही क्षेत्र है जहाँ कभी वीरप्पन का राज हुआ करता था यह जंगल कर्णाटक , तमिल नाडु और केरल के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैला है यहाँ बाघ , चीते , हाथी , जंगली भैंसे आदि देखे जा सकते हैं

जंगल के बीचों बीच मैसूर जाने वाली सड़क है दोनों तरफ घना जंगल लेकिन यहाँ से ड्राइव करते हुए सचमुच एक बहुत सुखद अहसास होता है


जंगल में प्रवेश के लिए एंट्री टिकेट यहाँ लेना पड़ता है
पौने घंटे के सफ़र के लिए एक घंटा इंतजार करना पड़ता है टिकेट के लिए

एक छोटी बस में बैठकर जिसमे करीब २० सवारी आती हैं , हम निकल पड़े जंगल की सैर को


सबसे पहले दिखाई दिए ये जंगली भैंसे --पूरा का पूरा झुण्ड जैसा डिस्कवरी चैनल पर अक्सर देखते हैं
देखने में घरेलु भैंसों से ज्यादा तगड़े और खुंखार
लेकिन हमें देख थोड़ा झिझके , फिर मौन भाषा में विमर्श कर , सब एक साइड से दूसरी साइड को दौड़ गए सड़क को पार करते हुए

एक अलग सा अनुभव था उन्हें देखना
एक जगह चीतल हिरणों का झुण्ड नज़र आया जो देखने में बहुत शानदार लग रहा था तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी इसलिए और जानवरों के दिखने की सम्भावना ख़त्म हो गई

एक जगह गिद्धों को उछल कूद मचाते देखकर आभास हुआ कि वहां किसी शिकार के अवशेष रहे होंगे
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर की भाषा में --वहां कुछ समय पहले एक किल हुआ होगा


वापसी में घने जंगल में बारिश के बीच ड्राइव करते हुए बड़ा अच्छा लग रहा था

पता चला इसी रास्ते पर जंगल के बीच मिथुन चक्रवर्ती का होटल है जो हमेशा भरा रहता है

अंत में हेयर पिन वाले इस रास्ते पर चलते हुए शाम होने लगी थी बच्चों ने सूर्यास्त के कुछ फोटो लिए और इस तरह यह पाय्करा लेक और मेदुमलाई जंगल सफारी टूर संपन्न हुआ

नोट : एक चटका यहाँ भी लगायें , यदि लगाया हो तो