मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

कुछ अप्रकाशित तस्वीरें , जिन्हें देखकर मन की उदासी दूर हो जाए --

विपरीत परिस्थितियों में मूढ़ ठीक करने के लिए तस्वीरों से ज्यादा बेहतर भला क्या हो सकता है । तस्वीरें भी यदि प्रकृति की हों तो क्या कहने ।

प्रस्तुत हैं मेरी पसंद की अप्रकाशित तस्वीरें , पिछली कनाडा यात्रा से ।

शाम के धुंधलके में झील का नज़ारा ।




नदी के ऊपर यह प्लेटफार्म ।


एक और शाम ।

नदिया के प़ार ।



जंगल में ।



पूर्ण शांति ।

जिस गाँव की सड़कें ऐसी हों , वहां जिंदगी कैसी होगी !



यहाँ ड्राइव करने का मज़ा ही कुछ और है ।




पंछी की परवाज़ ।



नीले आसमान पर सफ़ेद बादलों की छटा ही निराली है ।


सूरज झाँकने की कोशिश करता हुआ ।

एक प्राकृतिक सौन्दर्य ।


एक फ्रेंच स्टाइल का मकान ।

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

दिल्ली का इन्द्रप्रस्थ पार्क --एक नज़र .

दिल्ली में यमुना के किनारे , रिंग रोड पर बने इन्द्रप्रस्थ पार्क में बना है , शांति स्तूप --सफ़ेद संगमरमर में ।



पार्क में घुसते ही ये खाने पीने की दुकाने हैं । प्रष्ठ भूमि में शांति स्तूप ।




वहां जाने के लिए इस गेट से होकर जाना पड़ता है ।



एक एंगल से ।



यह चोटी शहर में पहाड़ का अहसास देती हुई ।



यहाँ एक छोटा सा जंगल भी है --एकदम घना ।


रास्ता बना है स्तूप तक जाने के लिए ।



साथ में रेलवे लाइन ।


सचमुच दिल्ली बहुत हरी भरी है ।

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

दिल्ली में बाढ़ का नज़ारा ---

हमारी याद में दिल्ली में १९७८ में बाढ़ आई थी । तब यातायात का कोई साधन न होने की वज़ह से हम चाहते हुए भी बाढ़ का नज़ारा देख नहीं पाए थे । लेकिन इस बार आई बाढ़ से तो बच ही नहीं सकते थे । क्योंकि रोज वहां से गुजरना होता है ।

तो आइये आपको भी दिखाते हैं दिल्ली में बाढ़ का नज़ारा ।

यह बिहार , असम या उत्तर प्रदेश का दृश्य नहीं है । बल्कि यह यमुना का नज़ारा है , दिल्ली के मयूर विहार क्षेत्र के सामने , नोयडा रोड से ।



मजदूरों के बच्चों के लिए प्राकृतिक तरण ताल ।



ज़रा पास से देखें तो ये बच्चे घरों की छत पर खड़े हैं जो पानी में लगभग डूब चुके हैं ।




पृष्ठ भूमि में दिखाई दे रहा है कॉमन वेल्थ गेम्स विलेज ।



और यहाँ अक्षरधाम मंदिर ।



यह दृश्य हाइवे पर बने फ्लाई ओवर से दिख रहा है ।



फ्लाई ओवर से दायीं ओर का नज़ारा ।



और ये बायीं ओर मयूर विहार की तरफ का दृश्य ।



कुदरत के सामने किस की चली है । राष्ट्र मंडल खेल तो होने ही हैं । अब इसी माहौल में होंगे , यह निश्चित है

नोट : ये तस्वीरें पिछले रविवार की हैंपानी अब उतर चुका हैइसलिए खेलों में कोई विघ्न नहीं आने वाला

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

कुछ तस्वीरें , यादों के पिटारे से ----

प्रस्तुत हैं कुछ तस्वीरें , यादों के पिटारे से ----




दूर इस झील के पार हमारा घर है ----।



ओहरे ताल मिले नदी के जल में , नदी मिले सागर में ---।




उफान पर नदी ।



अंग्रेजों की रातें बड़ी रंगीन होती हैं ---।



शाम होते ही पंछी घर की ओर चल देते हैं ----।



दो देश ---एक तरफ दिन , एक तरफ रात ----।



चौड़े पाट वाली नदी , कैसा रूप धारण कर लेती है ----।




थोडा दाना हमें भी ----।




आजा शाम होने आई , मौसम ने ली अंगडाई ----।




ये छोटे छोटे हवाई ज़हाज़ हैं या ----। क्या उड़ान है !



इंसान का सच्चा स्वरुप ----।




इस गाड़ी का नाम जानते हैं ?



शांत झील में थोड़ी सी खलबली ----।



ये शांत झील और ये शाम का समां ----।



ये कहाँ आ गए हम ---ये आ रहे हैं या जा रहे हैं ?


रविवार, 29 अगस्त 2010

मौसम के अनेक रूप , तस्वीरों के संग ----

जाने क्यों आज
मौसम के मिज़ाज़ उखड़े उखड़े से हैं,
हवाएं भी उदास आ रही हैं नज़र ।

इसी उदासी को मिटाने के लिए चलिए प्रस्तुत हैं कुछ मेरी पसंद की तस्वीरें ।


बादलों की छटा , झील के पानी में उतर आई है



यहाँ किस का रंग , किस पर चढ़ गया है , पता ही नहीं ।



एक प्रतिबिम्ब ऐसा भी ।




ये कौन सी जगह है दोस्तों ---




रात में इंडिया गेट का नज़ारा ।




ये सूरज मुर्झा गया है या चाँद जल्दी निकल आया है ।




आदमी इतना स्वार्थी भी नहीं है !




किस सोच में पड़े हो तुम ---




अब तक तो तबियत रंग बिरंगी हो गई होगी ।



हरियाणवी लोक नृत्य के ठुमके देखकर कोई उदासी टिक नहीं सकती ।